भारतीय संविधान सभा की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ | important features of the indian constituent assembly
1.सांप्रदायिक रचना:-
भारतीय संविधान सभा का संगठन सांप्रदायिक आधारों पर किया गया था . 1946 की मंत्रिमंडल मिशन योजना के अधीन मुसलमानों और सिखों के लिए स्थान सुरक्षित रखे हुए थे. और इन संप्रदायों के सदस्यों के चुनाब के लिए भी साम्प्रदायिक चुनाव विधि निश्चित की गयी थी. इन दो संप्रदायों के अतिरिक्त शेष सभी संप्रदायों को सामान्य वर्ग में शामिल किया गया था. सामान्य वर्ग में भारी बहुमत हिन्दुओं का था. परंतु कांग्रेस की धर्म निरपेक्ष निति के फलस्वरूप सामान्य वर्ग में अनुसूचित जातियां पिछड़े कविलो , पार्सिओं आंग्ल-भारतीओं, भारतीय इस्सयिओं आदि के प्रतिनिधि भी संविधान सभा के लिए चुने गए थे.
2.अप्रत्यक्ष चुनाव:-
भारतीय संविधान सभा का निर्माण एक ऐसी योजना के अधीन किया गया था जिस योजना को विदेशी ब्रिटिश सरकार ने निश्चित किया था. इस योजना के अधीन संविधान सभा के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली निश्चित की गयी थी. संविधान सभा के सदस्य ब्रिटिश भारत के प्रांतो की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुने गए थे .अप्रत्यक्ष रूप में चुने गए सदस्यों के अतिरिक्त भारतीय संविधान सभा में ‘मनोनीत तत्त्व’ भी था .यह ‘मनोनीत तत्त्व’ भारतीय देशी रियासतों के प्रतिनिधिओं के रूप में मौजूद था .
3.कांग्रेस संस्था :-
भारत की संविधान सभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या इतनी अधिक थी कि कुछ आलोचकों ने इसको कांग्रसी संस्था बताया है .संविधान सभा में कांग्रेस का भारी बहुमत होना स्भाविक था क्योंकि दिसम्बर,1945 में हुए प्रांतीय बिधानमंडलो के चुनाव में इस दल को भारी बहुमत प्राप्त हुआ था .उस प्रांतीय विधानमंडलो द्वारा ही ब्रिटिश भारत के प्रांतो के संविधान सभा के सदस्य चुने गए थे.
स्वतंत्रता से पहले इस संविधान सभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या लगभग 69%थी.स्वतंत्रता के पशचात मुस्लिम लीग के सदस्यों की संख्या 73 से कम हो कर 29 रह गई तो इससे संविधान सभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 82%हो गईं थी.मुस्लिम लीग के सदस्य भी कांग्रेस दल के साथ थे क्योंकि वह मुस्लिम हितो की सुरक्षा के इच्छुक थे और उनका यह विशवास था.कांग्रेस दल में पंडित जवाहर लाल नेहरु,सरदार पटेल,डॉ.राजेद्र प्रसाद और मौलाना आजाद का विशेष स्थान था.
4.नाम-मात्र विरोधी सदस्य:-
संविधान सभा में विपक्षी दल का अस्तित्व था.देश का विभाजन हो जाने के पश्चात् मुस्लिम एक शक्तिशाली राजनीतिक दल की सिथ्ती खो बैठी थी.भारतीय सविधान सभा में इसके शेष 29 सदस्य रह गये थे और यह सदस्य मुख्यतः मुस्लिम हितों की सुरक्षा को विशवस्त बनाने से सम्बध रखते थे.सिक्खों के चार प्रतिनिधि भी कांग्रेस की नीतिओ के समर्थक थे.हिंदू महासभा और साम्यवादी दल का कोई प्रतिनिधि इस संविधान सभा में नहीं था.देसी रिहास्तो के प्रतिनिधि भी राजनितिक रूप से एक दल के रूप में सगठित नही थे,बल्कि वह भी अपने हितो की सुरक्षा के लिए प्रयत्न करते थे.कहने का अभिप्राय यह है की संविधान सभा में कांग्रेस की प्रमुखता थी औरविरोधी दलों के सदस्यों की संख्या केवल नाममात्र ही थी.
5.वकीलों की संस्था:-
भारतीय संविधान सभा में वकीलों की भारी संख्या थी.अध्यापक,डॉक्टर और कुछ अन्य पेशों से सबधित लोग भी संविधान सभा में मौजूद थे,परंतु वकीलों की संख्या इतनी अधिक थी कि एक आलोचक ने भारतीय संविधान सभा को ‘वकीलों,हिन्दुओं तथा कांग्रेस की सभा था.मसौदा समिति में कुल 7 सदस्य थे.इस समिति के अध्यक्ष डॉ.बी.आर.अबेडकर के अतिरिक्त अलादी कृष्णा स्वामी अय्यर एन.गोपाला स्वामी आईगर के.एम.मुंशी और सईयद मुहम्मद सादऊला प्रसिद्ध वकील थे और बी.आर.मित्तर भारतसरकार के भूतपूर्व क़ानूनी सदस्य थे.बी.आर.मित्र ने 13अक्तूबर1947 को संविधान सभा की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया था |
6.मंत्रिमंडलिय मिशन योजना के अंतर्गत संविधान सभा की स्थिति:-
अंग्रजो के शासन काल में भारतीय स्वेधानिक समस्या के समाधान के लिए जो भी संस्था ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित की जाती थी,उसमे सरकारी सदस्य प्राय:शामिल किए जाते थे,परंतु मंत्रिमंडल मिशन योजना के अंतर्गत स्थापित हुई संविधान सभा में किसी सरकारी सदस्य को शामिल न किया गया.यद्यपि यह सभा विशुद्दध भारतीयों की सभा थी,परंतु यह सभा प्रभुत्वशाली संस्था नही थी.इस सभा ने मंत्रिमंडल योजना के अंतर्गत संविधान का निर्माण करना था.अत:यह सभा अपनी इच्छानुसार केंद्रीय सरकार की शक्तिया अर्पित नही कर सकती थी क्योंकि मंत्रिमंडल मिशन योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार को केवल विदेशी विषय,सुरक्षा और संचार के साधनों वाले तीन विषय ही दिए जाने थे.अपितु इसकी शक्तिया मंत्रिमंडल मिशन योजना द्वारा सीमित की गयी थी.
7.देश का विभाजन और संविधान सभा की सिथ्ती :-
18जुलाई,1947 को भारत स्वतन्त्रता अधिनियम को अपनी स्वीकृति दे दी| इन अधिनियम के अनुसार भारत में से ब्रिटिश राज्य को 15अगस्त1947 से समाप्त कर दिया और भारत को दो भागो में विभक्त कर भारत और पाकिस्तान दो अधिराज्यो की स्थापना की गयी.इस अधिनियम के पारित होने से भारतीय संविधान सभा की स्थिति में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया इससे पहले संविधान सभा ने मंत्रिमंडल मिशन योजना के अधीन कार्य करना था, परंतु अब संविधान सभा पूर्णतया प्रभुसता सम्पन संस्था बन गयी.
अब इसकी शक्तियों पर किसी प्रकार का क़ानूनी प्रतिबन्ध नही था और यह स्वेच्छा से स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण कर सकती थी.15अगस्त,1947 के बाद संविधान सभा ने दो कार्य करने थे- एक तो स्वतंत्र भारत के लिय संविधान का निर्माण करना था और दूसरा देश के लिए सदारण कानूनों का निर्माण करना था. 26 नवम्बर 1949 तक यह संविधानसभा दोनों प्रकार के कार्य करती रही, परंतु इस तिथि को इस संविधान का निर्माण करने का कार्य पूरा हो गया अत:अब इसके पास केवल सदारण कानूनों के निर्माण का कार्य शेष रह गया था.
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