Constitution of India | भारतीय संविधान का निर्माण

क्यू. भारतीय संविधान का निर्माण (Constitution of India) :-

उत्तर :- मुस्लिम लीग द्वारा संविधान सभा का बहिष्कार :- 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा का अधिवेशन आरंभ होना था. मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के भारी बहुमत से प्रभावित होकर संविधान सभा का बहिष्कार करने का निशचय किया. प्रधानमंत्री मि.ऐटली ने लार्ड वेवल, कांग्रेस, मुस्लिम लीग और सिक्खों के प्रतिनिधियों को 26 नवंबर, 1946, को इंग्लैण्ड से बातचीत करने के लिए निमत्रंण दिया ताकि संविधान सभा का अधिवेशन निशिचत समय पर उचित ढंग से हो सके तथा मुस्लिम लीग इसमें शामिल हो सके, परंतु उनका यह प्रयास सफल न हो सका. पंडित जवाहर लाल नेहरु जी के भरसक प्रयास के बावजूद भी मुस्लिम लीग संविधान सभा में शामिल होने के लिए सहमत न हुई,परंतु इसके बावजूद भी 9 दिसम्बर,1946 को संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुआ. पंडित सच्चीदानंद सिन्हा संविधान सभा के सदस्यों में आयु के आधार पर सबसे बड़े थे. अत: संविधान सभा का कार्य आरंभ करने के लिए उन्हें अस्थायी रूप में अध्यक्ष चुना गया. बाद में 11 दिसम्वर, 1946 को संविधान सभा ने डॉ. राजेद्र प्रसाद को स्थायी रूप में अपना अध्यक्ष निर्वाचित किया|

उददेश्य प्रस्ताव :- 13 दिसम्बर,1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरु ने नए संविधान के उददेश्यों के विषयों में एक प्रस्ताव संविधान सभा में प्रस्तुत किया. इस प्रस्ताव की बहुत महता थी. इस उददेश्य प्रस्ताव की मुख्य विशेषताए इस प्रकार है :-

(1)”भारत एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता-संपन्न गणराज्य होगा |

(2) वह सब क्षेत्र, जो इस समय ब्रिटिश भारत में शामिल है, जो क्षेत्र भारतीय रिहास्तो के अधीन, भारत के ऐसे और भाग जो ब्रिटिश भारत तथा भारतीय रिहास्तो से पृथक है |

(3) उपरोक्त वर्णित क्षेत्रो को, अपनी वर्तमान सीमाओं सहित या ऐसी सीमाओं सहित जो संविधान सभा द्वारा तथा उसके पशचात संविधान के कानूनों द्वारा निशिचत की जाएंगी,स्वायत्त इकाईयों की स्तिथि प्राप्त होगी तथा अवशिष्ट शक्तिया इन इकाईयों के पास होगी |

(4) प्रभुसता-संपन्न स्वतंत्र भारत, इसके निर्मानिक भागो तथा सरकार के अंगो की सब शक्तियाँ तथा अधिकार जनता से प्राप्त किए जाएंगे |

संविधान सभा की मांग व विशेषता

संविधान सभा की समितियों की नियुक्ति :- संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसम्बर,1946 से लेकर 23 दिसम्वर,1946 तक, दूसरा अधिवेशन 20 जनवरी, 1947 से 25 जनवरी, 1947 तक और तीसरा अधिवेशन 2 अप्रैल,1947 से 2 मई, 1947 तक चला. इन अधिवेशनों में संविधान सभा ने कुछ समितिया नियुक्त की जो इस प्रकार है:-

1.संघीय शक्तियों की समिति

2.संघीय संविधान समिति

3.प्रांतीय संविधानों सम्बधि समिति

4.अल्पसंख्यको तथा मौलिक अधिकारों से सबंधित परामर्शदात्री समिति

5.संघ तथा राज्यों के वित्तीय सबंधो की समिति

भारतीय संविधान सभा की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ:-

भारतीय रिहास्तो का संविधान सभा में प्रवेश :-

बडौदा, बीकानेर, उदयपुर, जयपुर, रीवा, कोचीन, ग्वालियर, जोधपुर, भावनगर और पटियाला रियासतों के प्रतिनिधि मार्च-अप्रैल, 1947 संविधान सभा में शामिल हुए. इनके पशचात विभिन्न तिथियों पर अन्य भारतीय रियासतों ने भी अपने प्रतिनिधि संविधान सभा में भेजे.जम्मू-कश्मीर रियासत के प्रतिनिधियों ने अक्तूबर,1947 में और हैदराबाद के प्रतिनिधियों ने नवबंर, 1948 में संविधान सभा के अधिवेशनों में भाग लेना आरंभ किया |

देश के विभाजन के पश्चात् संविधान सभा की रचना

राष्ट्रिय ध्वज को ग्रहण करना :-

संविधान सभा का चौथा अधिवेशन 14 जुलाई, 1947 को आरंभ होकर 31 जुलाई, 1947 तक चला इस अधिवेशन में विभिन्न समितियों द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्टो पर बिचार किया गया. यह अधिवेशन इस बात से विशेषत: महत्वपूर्ण है कि इस अधिवेशन 22 जुलाई, 1947 को विधान सभा के द्वारा राष्ट्रिय ध्वज अपनाया गया था. इस राष्ट्रिय ध्वज में केसरी, सफेद और हरा समान अमुपात में तीन रंग है. मध्य की सफेद पट्टी पर नीले रंग का अशोक चक्र है. यह ध्वज दो फुट चौड़ा और तीन फुट लंबा है. राष्ट्रिय ध्वज के लिए केवल खददर का कपड़ा ही प्रयुक्त किया जा सकता है. राष्ट्रिय ध्वज का संवैधानिक नाम चक्रध्वज है |

formation of constituent assembly in Hindi

मसौदा समिति की नियुक्क्ति :-

संविधान सभा का पांचवा अधिवेशन 14 अगस्त, 1947 को आरंभ हुआ तथा 30 अगस्त, 1947 तक चलता रहा. 29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा के सात सदस्यों की मसौदा समिति को नियुक्त किया. इन सदस्यों के नाम इस प्रकार है :-

  1. डॉ. बी. आर. अंबेदकर
  2. अलादी कृष्णा स्वामी अय्यर
  3. एन. गोपाल स्वामी आंयगर
  4. के. एम. मुंशी
  5. मुहम्मद सादुउल्ला
  6. बी. आर. मित्तर
  7. एन. माधव राव
  8. डी.पी. खैतान
  9. श्री टी. टी. कृष्णाचारी

संविधान सभा द्वारा स्वतंत्र भारत के संविधान को अपनाना :-

27 फरवरी, 1947 को मसौदा समिति ने संविधान सभा के अध्यक्ष को संविधान सभा का मसौदा संविधान प्रस्तुत किया. इस संविधान में 315 अनुछेद और 8 अनुसूचिया थी. संविधान के इस प्रारूप पर विचार करने के लिए जनता प्रांतीय विधानमंडलो और अन्य संस्थाओं आदि को समय देना आवश्यक था. अत: संविधान सभा का अगला अधिवेशन 4 नवंबर, 1948 को आरंभ हुआ. इस दिन ही संविधान के मसौदे को संविधान सभा में प्रस्तुत किया गया. इस मसौदे पर एक सामान्य वाद-विवाद हुआ जो 9 नवंबर, 1948 तक चलता रहा. इसके पशचात 14 नवंबर, 1948 से लेकर 17 अक्तूबर, 1949 तक संविधान के मसौदे की एक-एक धारा पर विचार-विमर्श किया गया. इस समय में 7,635 संशोधन प्रस्तुत किये गए जिनमे से 2,473 संशोधनों पर संविधान सभा के द्वारा वाद-विवाद हुआ और कई संशोधन स्वीकार कर लिए गयें. 14 नवंबर,1949 को संविधान सभा का एक और अधिवेशन हुआ और यह अधिवेशन 26 नवंबर,1949 तक चलता रहा. इस अधिवेशन में एक साधारण वाद-विवाद के पशचात 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेद्र प्रसाद ने संविधान के अंतिम रूप पर अपने हस्ताक्षर करके भारत को एक नया संविधान प्रदान किया |

संविधान सभा द्वारा संविधान को अपनाना :-

संविधान सभा का प्रधान डॉ. राजेद्र प्रसाद द्वारा संविधान की अंतिम रूपरेखा पर हस्ताक्षर करने के पशचात् स्वतंत्र भारत के लिए संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था. भारतीय संवैधानिक इतिहास में 26 नवंबर, 1949 का दिन महान ऐतिहासिक महत्ता का दिन है क्योंकि उस दिन संविधान सभा ने भारतीय लोगो के नाम पर स्वतंत्र भारत का संविधान स्वीकार किया था |

संविधान सभा का अंतिम अधिवेशन :-

संविधान सभा का अंतिम अधिवेशन 24 जनवरी, 1950 को हुआ. इस अधिवेशन में संविधान सभा ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सर्वसहमति से भारतीय गनतंत्र का प्रथम राष्ट्रपति निर्वाचित किया. इस अंतिम दिन ही संविधान सभा के सभी सदस्यों ने स्वतंत्र भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किये. संविधान की तीन प्रतियों पर सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किये. उनमे से एक हस्तलिखित प्रति हिंदी भाषा में एक हस्तलिखित प्रति अंग्रेजी भाषा में और तीसरी अंग्रेजी भाषा में छपी हुई प्रति थी. सदस्यों के द्वारा सभी प्रतियों पर हस्ताक्षर होने के पशचात डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने हस्ताक्षर किये. इस प्रकार स्वतंत्र भारत का संविधान अंतिम रूप में तैयार हुआ जो 26 जनवरी,1950 को लागू किया गया. संविधान सभा का अंतिम अधिवेशन राष्ट्रिय गीत ‘जन-गण-मन’ और ‘वंदे मातरम्’की मधुर गूंजो से समाप्त हुआ |

Leave a Reply