संविधान के मुख्य स्त्रोत कौन से है

क्यू. भारतीय संविधान के स्त्रोतों को कितने वर्गो में बांटा जा सकता है ?

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क्यू. भारतीय संविधान के तीन स्त्रोतों की व्याख्या करें ?

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क्यू. संविधान के मुख्य स्त्रोत कौन से है ?

उत्तर :- किसी भी देश का संविधान विशुदध रूप में मौलिक नही हो सकता, क्योंकि संविधान का निर्माण करते समय अन्य देशों की शासन प्रणालियों, लिखित विधिक प्रलेखो रीति-रिवाजों, परम्पराओ और ऐतिहासिक अनुभवों आदि से अवश्य प्रभावित होते है. 26 जनवरी, 1950 को लागू होने वाला भारतीय संविधान इस स्वीकृत सत्यता से कोई अपवाद नही है.

भारतीय संविधान का निर्माण

भारतीय संविधान के अनेक महत्वपूर्ण स्त्रोत है इन्हें दो  श्रेणियों में बांटा जा सकता है :-

(1)जन्म सबंधी स्त्रोत :-

जन्म सबंधी स्त्रोत उन्हें कहा जाता है जिन्होंने संविधान के निर्माण पर प्रभाव डाला था जिससे हमारे संविधान के निर्माताओं ने कई सिद्धांत तथा नियम ग्रहण करके भारतीय संविधान में सम्मिलित किये थे |

(2) विकासवादी स्त्रोत :-

विकासवादी स्त्रोत ऐसे तथ्यों की संज्ञा है जिन तथ्यों ने भारतीय संविधान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है तथा जो वर्तमान समय में भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण स्त्रोत स्वीकृत किये जाते है. ऐसे विकासवादी तथ्य अथवा स्त्रोत संविधान के लागू होने के पशचात असितत्व में आये थे. इन दोनों प्रकार के स्त्रोतों की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है :-

जन्म सबंधी स्त्रोत

1.1948 का मसौदा संविधान :-

संविधान सभा ने 29 अगस्त,1947 को 7 सदस्यों की एक मसौदा समिति नियुक्त की गयी थी. इस समिति के अध्यक्ष डॉ. बी. आर. अंबेदकर थे. मसौदा समिति ने 21 फरवरी,1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ.राजेंद्र प्रसाद को संविधान का मसौदा प्रस्तुत किया. संविधान ने मसौदा में 315 अनुछेद और 8 अनुसूचियां थी. 26 जनवरी,1950 को लागू होने वाले भारतीय संविधान का मुख्य स्त्रोत यह मसौदा संविधान ही है |

2. भिन्न-भिन्न समितियों की रिपोर्टे :-

(1) संघीय शक्तियों की समिति

(2) संघीय संविधान समिति

(3) प्रांतीय संविधानो के सबंध में समिति

(4) अल्पसंख्यको तथा मौलिक अधिकारों से सबंधित परामर्शदात्री समिति

3. 1935 का भारत सरकार अधिनियम :-

1935 का अधिनियम ब्रिटिश भारत के लिए यद्यपि इंग्लैण्ड की संसद ने 1935 में पारित किया था. अत: मसौदा समिति ने 1935 के अधिनियम के अनेक उपबंध उधार लिए है . वर्तमान संविधान के अनुच्छेद 352 जिसके अंतर्गत राष्ट्रपति की बाहय आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण आपातकालीन स्तिथि की घोषणा करने की शक्ति दी गयी है.

राज्यों में 1935 के अधिनियम की भांति राज्य विधानमंडल के निम्न सदन को विधान सभा और उपरि सदन को विधान परिषद् का नाम दिया गया है. इन उपबंधो के अतिरिक्त स्वतंत्र भारत के संविधान में अन्य उपबंध ऐसे है जो 1935 के अधिनियम से लिए गए है. अत: 1935 के अधिनियम को भारतीय संविधान का महत्वपूर्ण स्त्रोत समझा जाता है |

4.1928 की नेहरु रिपोर्ट :-

स्वतंत्रता से पूर्व 28 फरवरी,1928 को भारतीय राजनीतिक दलो का एक संयुक्त अधिवेशन दिल्ली में हुआ था. इस सम्मेलन का उद्देश्य एक ऐसे भारतीय संविधान का निर्माण करना था जो भारत के विभिन्न दलों और वर्गो को स्वीकार हो. इस सम्मेलन में 8 सदस्यों की एक समिति बनाई गयी थी जिसके अध्यक्ष पंडित मोती लाल नेहरु थे.

इस समिति द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट को नेहरु रिपोर्ट कहा जाता है. नेहरु रिपोर्ट में कुछ ऐसी बातो की सिफारिश की गयी जो वर्तमान भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएँ है. नेहरु रिपोर्ट की ऐसी मुख्य सिफारिशे इस प्रकार है :-

(1) भारत में संघ सरकार की स्थापना की जाए जिसमे केंद्र शक्तिशाली हो. कैनेडा के संघ की भांति अवशिष्ट शक्तियां केंद्र सरकार की अर्पित की जाएं |

(2) भारत में साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली के स्थान पर संयुक्त चुनाव प्रणाली लागू की जाए |

(3) भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है |

(4) केंद्र में दवि-सदनीय विधान मंडल की व्यवस्था की जाए. निम्न सदन का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप में तथा उच्च-सदन के सदस्यों का चुनाव प्रांतीय विधान परिषदों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाए |

(5) केंद्र के निम्न सदन तथा प्रांतीय विधान सभाओ के चुनावों के लिए व्यस्क मताधिकार बिना किसी भेदभाव के दिया जाए तथा मताधिकार देने के लिए 21 वर्ष की आयु निशिचत की जाये |

5. अन्य देशों की संवैधानिक प्रणालीयां :-

संविधान सभा द्वारा नियुक्त की गई मसौदा समिति के सदस्यों ने उस समय विशव के विभिन्न देशों में प्रचलित संवैधानिक प्रणालीयों का पूर्ण अध्ययन किया.

संविधान सभा के संवैधानिक परामर्शदाता सर बी. एन.राव ने अनेक देशों का भ्रमण करके व्यक्तिगत तौर पर वंहा की संवैधानिक प्रणालीयों का अध्ययन किया. इस अध्ययन के अधार पर ही उन्होंने संविधान सभा को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस पर मसौदा समिति के सदस्यों ने पूर्ण विचार-विमर्श किया |

6. उददेश्य सबंधी प्रस्ताव :-

13 दिसम्बर,1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरु ने निर्मित होने वाले नये संविधान के उददेश्यों सबंधी एक प्रस्ताव संविधान सभ में प्रस्त्तुत किया था.यह सत्य है कि इस प्रस्ताव में वर्णित किये सभी उददेश्यों को स्वतंत्र भारत के संविधान का आधार नही माना गया है.

परंतु फिर भी वर्तमान भारतीय संविधान की अनेक महत्वपूर्ण विशेषताएँ इस उददेश्य प्रस्ताव से ही ली गयी है. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि भारत एक प्रभुसत्ता-संपन्न गणराज्य होगा. सरकार की सभी शक्तियां तथा अधिकार जनता से लिए जाएंगे |

7. संविधान सभा के वाद-विवाद :-

संविधान सभा द्वारा नियुक्त की गयी भिन्न-भिन्न विषयों सबंधी अनेक समितियों की रिपोर्टो पर संविधान सभा के सदस्यों ने बहुत विस्तारपूर्वक वाद-विवाद किया था. इसके अतिरिक्त मसौदा समिति द्वारा तैयार किया मसौदा संविधान 4 नवंबर, 1948 को संविधान सभा में प्रस्तुत किया गया था.

संविधान के इस मसौदा की एक-एक धारा पर संविधान सभा के सदस्यों ने वाद-विवाद किया. संविधान सभा में कोई साधारण बुदधि वाले व्यक्ति नही थे,अपितु देश के उच्चकोटि के विद्वान्, बुदधिजीवी, विधिज्ञ, अध्यापक, संवैधानिक विशेषज्ञ आदि इस सभा के सदस्य थे.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ.अंबेदकर, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल,डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी, अल्लादी कृष्ण स्वामी अय्यर, एन. गोपाल स्वामी आयंगर, के. एम. मुंशी आदि उच्चकोटि के राजनीतिज्ञों के उच्च विचारो की छाप संविधान पर होना सर्वथा स्वाभाविक थी.

इसी कारण संविधान सभा के भिन्न-भिन्न अधिवेशनों द्वारा हुए सर्वोत्तम स्तर के वाद-विवाद को भारतीय संविधान के स्त्रोत के रूप में माना जाता है |

विकासवादी स्त्रोत.

26 जनवरी 1949  को संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के संविधान को स्वीकार किया था तथा वह संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया था. उपयुक्त कुछ ऐसे स्त्रोत है जीनसे स्वतंत्र भारत के संविधान के अनेक उपबंधो , सिधान्तो अथवा संस्थाओ को लिया गया था.

कुछ लेखक संवैधानिक संशोधन न्यायिक निर्णयों , परम्पराओं , भारतीय संविधान के सम्बन्ध में संवैधानिक विशेषज्ञों के लेखो आदि को भी भारतीय संविधान के स्त्रोत मानते थे. ऐसे तथ्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:-

 

1.संवैधानिक संशोधन :-

संविधान के लागू होने की तिथि से लेकर अब तक भारतीय संविधान में 96 संशोधन किए जा चुके है| इन संवैधानिक संशोधनों ने सं 1950 को लागू हुए संविधान की रुपरेखा वर्णित कर दी है. 1950 में  भारतीय संविधान जब मौलिक रूप से लागू किया गया था तो उसी समय भारतीय संघ की एकाइओ को a b c तथा d चार प्रकार के राज्यों में विभाजित किया गया था.

उस समय संघीय क्षेत्र जैसी कोई इकाई नही थी. परंतु 1956 में संविधान के सातवें संशोधन द्वारा भारतीय संघ की एकाइओ का पुनर्गठन करके राज्यों का वह चार सूत्रीय वर्गीकरण समाप्त कर दिया था. संविधान में किये गए प्रत्येक संशोधन ने भारतीय संवैधानिक ढांचे में थोडा बहत्त परिवर्तन अवश्य किया है.

2.संसद के कानून :-

संविधान के ऐसे अनेक अनुच्छेद है  जिनकी विस्त्रित्त व्याख्या संविधान में नही की गयी आपितु इसके संवंध में आवश्यक कानून बनाने के लिए भारतीय संसद को शक्ती प्रदान की गयी है. उदाहरणस्वुरूप अनुछेद 11 के अंतर्गत ब्भार्तीय नागरिकता के संबंध में कानून बनाने की शक्ति आदि.

3.न्यायिक निर्णय :-

भारतीय न्यायपालिका भारतीय संविधान की रक्षक और अंतीम व्यखाकार है . सर्वोच न्यायालय ने कई मुकदमो संबंधी ऐसे निर्णय दिए है जिन्होंने अनेक संवैधानीक  नियमों को जन्म दिया है.  

उदाहरणत: 1973 में केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य के मुकदमे में यह निर्णय दिया था कि भारतीय संसद संविधान में कोई ऐसा संशोधन नही कर सकती जो संविधान के मौलिक ढांचे अथवा उसकी कोई आवश्क विशेषता की उलंघना करता हो.

सर्वोच न्यायालय द्वारा निश्चित यह संवैधानिक नियम ससद की संवैधानिक शक्ति पर एक महत्वपूर्ण प्रतिवंध है. इसी प्रकार जून 1974 में सर्वोच न्यायालय ने राष्ट्रपति को यह संवैधानिक परामर्श दिया था कि प्रथम राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व नए राष्ट्रपति का चुनाव कर लेना आवश्यक है.

4. परंपराएँ :-

भारत का संविधान यद्यपी विस्तृत तथा लिखित संविधान है. फिर भी इसके अनेक उपबंध संवैधानिक परम्पराओं पर आधारित है. भारत का संबिधान अनेक महत्वपूर्ण विषय संबंधी कोई स्पष्ट व्याख्य नही करता. इस कारण भारतीय संवैधानिक प्रणाली में अनेक परम्पराएँ स्थापित हो चुकी है.

उदाहरणस्वरूप संविधान के अनुच्छेद 74 में मंत्रिपरिषद का वर्णन किया गया है परंतु वास्तव में मंत्रिपरिषद नहीं वल्कि मंत्रिमंडल एक शक्तिशाली संस्था है. जो वास्तविक अर्थ में देश के प्रशासन को संचालित करती है.

5. संवैधानिक विशेषज्ञों के विचार :-

भारत के संविधान के लागू होने के पश्चात् इनेक संवैधानिक विशेषज्ञों ने अपने लेखो द्वारा भारतीय संविधान के संबंध में अपने विचार व्यक्त किये है. यद्यपि दंवैधानिक विशेषज्ञों के  विचारो को कोई क़ानूनी मान्यता प्राप्त नही.

परंतु फिर भी उच्च कोटि के विद्वानों के विचारो को आँखों से ओझल नही किया जा सकता इसी कारण विधायक कानून बनाते समय तथा न्यायालय संवैधानिक अभियोगों का निर्णय करते समय संवैधानिक विशेषज्ञों के विचारो का सामान करते है. भारतीय संविधान के संवंध में संवैधानिक विशेषज्ञों को निम्न रचनाओ को सम्मान दृष्टि से देखा जाता है –

(i)Constitutional Development in India – Alexendrowics.

(ii) Some Characteristics of the Constitution of India – Jennings.

(iii) The Republic of India – Gladhill

(iv) Constitutional Government of India – M. V. Pylee

(v) The Constitution of India – V. N. Shukla

(vi) Commentary on thee Constitution of India – D. D. Basu.

 

निष्कर्ष :-

अन्य देशों के संविधान की भांति भारतीय संविधान भी विशुद्ध रूप से मौलिक नही है. अपितु इसके भिन्न भिन्न उपलब्ध बिभिन्न स्त्रोतों से लिए गए है. अन्य देशों के संविधानो से संविधान निर्माताओ के अनेक सिधांत तथा संस्थाओ को लेकर भारतीय परस्थितियों के अनुसार इनमे संशोधन करके अपने संविधान में अंकित किया है.

इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान का जो वर्तमान रूप है इसके नीर्माण में संवैधानिक संशोधनों, न्यायिक निर्णयों, परंपराओं, संसद के कानूनों आदि ने भी महत्वपूर्ण भाग डाला है.

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