functions or role of constitution of india | संविधान के कार्य एव भूमिका
अथ्वा
एक संविधान क्या करता है ?
आधुनिक समय में संविधान के बिना किसी भी देश की शासन प्रणाली की कल्पना भी नही की जा सकती है |प्रतयेक तरह के राज्य के लिए अपने देश के प्रशासन को संचलित करने के लिए लिखित या अलिखित नियमों की जरूरत पडती है |किसी भी देश का संबिधान निम्नलिखित स्वरूप की भूमिका का प्राय:निर्वहन करता है –
1.देश का सर्वोच्च कानून :-
किसी भी देश का संविधान उस देश का सर्वोच्च कानून होता है |कोई भी अन्य कानून ,संविदा या प्रलेख उससे उच्च नही हो सकता है |प्रत्येक व्यक्ति संविधान के अनुसार निर्मित कानून का पालन करने के लिए वध्या होता है |कोई भी सरकारी कर्मचारी या देश का शासन उनके विरुद्ध कोई कार्य नही कर सकता है |संसद या राज्य विधानमंडल किसी ऐसे कानून का निर्माण नही कर सकते है .जो संविधान के किसी अनुछेद या धारा के विरुद्ध हो |विधानमंडल द्वारा निर्मित ऐसे कानून या प्रस्ताव को न्यायपालिका असंवैधानिक घोषित कर सकती है |प्रत्येक प्रशासनिक पद को ग्रहण करते समय इसके गौरव व गरिमा की सुरक्षा बनाये रखने की शपथ प्रशासनिक अधिकारीयों द्बारा ली जाती है |स्पष्ट है कि संविधान देश का सर्वोच कानून माना जाता है |
2.सरकार के गठन की जानकारी देता है :-
किसी भी देश के संविधान के द्वारा उस देश द्वारा अपनाई गयी शासन व्यवस्ता के अंतर्गत सरकार के गठन की जानकारी उपलब्ध करवाई जाती है कि सरकार का गठन किस तरह से होगा उद्धरणस्वरूप यदि कोई राज्य अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाता है तो राष्ट्रपति का चुनाब प्रत्यक्ष तौर पर जनता द्वारा होगा अथबा निर्वाचक मंडल के द्वारा तथा कितने प्रतिशत मत प्राप्त करने बाला प्रत्याशी विजयी घोषित किया जायगा आदि को जानकारी संविधान द्वारा ही प्राप्त की जाती है इसी तरह यदि किसी राज्य में संसदीय या मंत्रीमंडल शासन व्यवस्ता को अपनाया गया है तो वंहा राज्य के संवैधानिकमुखिया की स्थिति ,प्रधानमंत्री की नियुक्ति केसे होगी ,किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में राष्ट्रपति या शासक किसे प्रधानमंत्री नियुक्त करेगा आदि के विषय में जानकारी संविधान से ही प्राप्त होता है |
संविधान क्या है अथ्वा हमें संविधान की आवश्यकता क्यों पडती है?
3.सरकार के स्वरूप की जानकारी :-
किसी भी देश के संविधान का साधारण अध्ययन उस देश के द्वारा अपनाए गए शासन व्यवस्ता के स्वरूप की जानकारी हमे प्रदान करता है |आधुनिक समय में अनेको तरह की शासन व्यवस्थाए प्रचलित है जैसे कि अध्य्क्षात्म्क ,संसदीय ,एकात्मक ,संघात्मक ,तानाशी ,समाजवादी ,लोकतंत्रीय सरकार ,गेर –लोकतंत्रीय सरकार आदि |सरकार के इन विभिन्न रूपों की जानकारी हमे विभिन्न देशों के संविधानो से मिलती है |
4.कानून के शासन की व्यवस्था :-
जिस देश के द्वारा संविधान को अपनाया जाता है ,प्राय:उससे आशा की जाती है कि वह अपने कानून के शासन की व्यवस्था करे |कानून के शासन से हमारा अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से है जिसके अंतर्गत देश का शासन किसी व्यक्ति विशेष की इच्छानुसार नही अपितु संविधान में वर्णित उपबंधो के अनुसार चलाया जाता है |जंहा कानून का शासन होगा ,वंहा एक जैसी अवस्थाओं में सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता तथा कानून की समान सुरक्षा प्रदान होगी |
5.शक्तियों के पृथक्करणकी व्याख्या :-
संविधान के द्वारा शक्तियों के पृथक्करण की व्याख्या भी की जाती है |शासन सम्वन्धी शक्तिया किस व्यक्ति या व्यक्तियों के हाथो में केन्द्रित है ,इसकी जानकारी हमे संविधान के द्वारा ही प्राप्त होती है |यदि किसी शासन व्यवस्था की समस्त शक्तिया एक सरकार या केंद्र में निहित है तो वहा एकात्मक शासन व्यवस्था होगी |इस व्यवस्था में राज्य की इकाईयोंको कोई शक्ति प्राप्त नही होती है और वह शासन सम्बन्धी शक्तिया केंद्र सरकार से लेती है |
6.सरकार की भिन्न :–
भिन्न सस्थाओ की शक्तिया और कार्य की व्यवस्था :-प्रत्येक देश के संविधान के अंतर्गत उस देश की सरकार और उसके विभिन्न अंगो या इकाईयो की व्यवस्था की जाती है |प्रतेयक तरह की सरकार के सामान्यतया तीन अंग होते है –विधानपालिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका |संविधान में इन तीनो अंगो की सरंचना ,उसके विभिन्न कार्यो ,शक्तियों ,कार्य काल ,स्थिति और नियन्त्रण आदि की पूर्ण व्यवस्था व व्याख्या की जाती है |उदाहरणस्वरूप भारत में संसद के तीन अंग है राष्ट्रपति ,राज्यसभा और लोकसभा |राष्ट्रपति की नियुक्ति ,उसका कार्यकाल ,शक्तिया और स्तिथि ,राज्य सभा और लोकसभा का गठन ,उनके सदस्यों की योग्यता ,कार्यकाल,वेतन व भत्ते ,कार्य व शक्तिया ,स्तिथि आदि का विस्तृत वर्णन संविधान के विभिन्न उपबंधो के अंतर्गत किया गया है |
7.नागरिको को मौलिक अधिकार व कर्तव्य प्रदान करना :-
संविधान के द्वारा अपने देश के नागरिको को मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य प्रदान किये जाते है प्रत्येक देश के संविधान का अंतिम लक्ष्य अपने नागरिकों का सर्वागीण विकास करना होता हिया. इसके लिए वह अपने नागरिकों को विभिन्न तरह के अधिकार प्रदान करता है. तथा इन अधिकारों के एवज में नागरिकों से कुछ कर्तव्यों को पूर्ण करने की आशा भी करता है सविधान के द्वारा अपने नागरिकों को समानता, सवतंत्रता, काम धार्मिक सवतंत्रता, शोषण के विरुद्ध, शेक्षणिक व सांस्कृतिक सवतंत्रता, राजनीतिक अधिकार , सामाजिक अधीकार, आदि प्रदान करता है. इन अधिकारों के साथ-2 राज्य की और से अपने नागरिको के कर्तव्य का वर्णन भी सविधान में वर्णित किया जाता है.उदाहरणस्वरूप भारत के सविधान के अनुच्छेद 32 के द्वारा यह व्यवस्था की गयी है कि यदि कोई व्यक्ति , संस्था या सरकार किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की अवहेलना कर रही है तो उच्च न्यायालय या सर्वोच्च नयायालय के द्वारा विभिन्न तरह के पांच लेख बंदी प्रत्यक्षीकरन लेख, परमादेश लेख, प्रतिषेध लेख, उत्प्रेशन लेख व अधिकार प्रिच्छालेख जारी कर सकता है.
8.सरकारों के लिए दिशा निर्देश :-
सविधान का एक मुख्य कार्य आने वाली सरकारों को कार्य प्रवंधन या शासन प्रवंध सम्वन्धी दिशा निर्देश जारी करना होता है. सरकारे आती और जाती रहती है, परन्तु सविधान चलता रहता है. प्रत्येक सरकार शासन का प्रवंध सविधान में वर्णित उपवंधो के अनुसार ही करती है.प्रत्येक तरह की सरकार के गठन, उनके कार्य व शक्तिओ तथा प्रतिवंधो आदि का वर्णन सविधान के अंतर्गत किया जाता है.सरकारे सविधान के अनुसार ही अपना आचरण करती है. यदि कोई सरकार सविधान द्वारा निर्धारित दिशा निर्देश का पालन नही करती है अथ्वा उसके दिशा निर्देशों की अवहेलना करती है तो ऐसी सरकार को गैर संवेधानिक घोषित किया जाता है.