सांची का स्तूप कंहा स्थित है. Indian History All Exam Online

सांची का स्तूप कंहा स्थित है. Indian History

सांची का स्तूप कंहा स्थित है. Indian History

क्यू. सांची का स्तूप कंहा स्थित है ?इसकी कोई एक बिशेषता बताए ?

उत्तर :- सांची का स्तूप मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 20 मील उत्तर-पूर्व में स्थित सांची कनखेड़ा नामक एक गांव में स्थित है. यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है और एक मुकुट के समान दिखाई देता है |

क्यू. सांची के स्तूप का क्या महत्व है?कोई दो विंदु लिखिए ?

उत्तर :- 1. सांची का स्तूप प्राचीन भारत की अद्भुत स्थापत्य कला का शानदार नमूना है |

  1. यह बौदध धर्म का महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा है. इसकी खोज से आरंभिक बौदध धर्म के बारे में हमारी समझ में महत्वपूर्ण परिवर्तन आये |

क्यू. महात्मा बुदध का जन्म कब और कहा हुआ ?

उत्तर :- महात्मा बुदध का जन्म 566 ई. पू. में कपिलवस्तु में हुआ |

क्यू. “बौदध धर्म हिंदू धर्म के अंतर्गत ही एक सुधारवादी आंदोलन था.”इस मत की विवेचना करे |

उत्तर :- महात्मा बुदध ने कोई नया धर्म नही चलाया था. उन्होंने केवल हिंदू धर्म में फैली कुरीतियों का विरोध किया था. उनके विचारों ने बौदध धर्म का रूप धारण कर लिया था. इस प्रकार बौदध हिंदू धर्म के अंतर्गत ही एक सुधारवादी आंदोलन था |

क्यू. स्तूप क्या है ?

उत्तर :- स्तूप बुदध धर्म से जुड़े पवित्र टीले है. इनमे बुदध के शरीर के कुछ अवशेष अथवा उनके दवारा प्रयोग की गयी किसी वस्तु को गाडा गया था |

क्यू. बौदध धर्म की शिक्षाओ का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ?

उत्तर :- बौदध धर्म की मुख्य शिक्षाएं निम्नलिखित है :-

  1. बौदध दर्शन के अनुसार विशव अनित्य है. यह लगातार बदल रहा है. यह आत्मविहीन (आत्मा) है क्योंकि यंहा कुछ भी स्थायी अथवा शाशवत नही है |
  2. इस क्षणभंगुर संसार में दु:ख मनुष्य की जीवन को जकड़े हुए है. घोर तपस्या और विषयासकित के बीच मध्यम मार्ग अपनाकर मनुष्य संसार के दुःखो से मुक्ति पा सकता है |
  3. बौदध धर्म की प्रारंभिक परम्पराओ में भगवान् का होना या न होना अप्रासंगीक था |
  4. बुदध का मानना था कि समाज का निर्माण मनुष्यों ने किया था न कि ईश्वर ने. इसीलिए उन्होंने राजाओ और गृहपतियों को दयावान और आचारवान बनने की सलाह दी. बुदध के अनुसार व्यक्तिगत प्रयास से सामाजिक परिवेश को बदला जा सकता है |
  5. बुदध ने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, आत्म-ज्ञान और निर्वाण के लिए सम्यक कर्म पर बल दिया |
  6. बौदध परंपरा के अनुसार अपने शिष्यों के लिए बुदध का अंतिम निर्देश यह था:”तुम सब अपने लिए स्वयं ही ज्योति बनो क्योंकि तुम्हेँ स्वयं ही अपनी मुक्ति का मार्ग ढूँढना है |”

क्यू. बौदध धर्म की लोकप्रियता के क्या कारण थे ?

              अथवा

बौदध धर्म के शीघ्र प्रसार के कारणों का वर्णन करो |

उत्तर :- बौदध धर्म का उदय छठी शताब्दी ई. पू. में हुआ. यह धर्म शीघ्र ही अत्यंत लोकप्रिय हो गया जिसके कारण इस प्रकार थे :-

  1. बौदध धर्म की शिक्षाएं बड़ी सरल थी. साधारण-से-साधारण लोग भी इन्हें आसानी से समझ सकते थे |
  2. महात्मा बुदध ने अपने उपदेशों का प्रचार बोल-चाल की भाषा में किया.परिणामस्वरूप अनेक लोग महात्मा बौदध के अनुयायी बन गए |
  3. महात्मा बुदध ने जाति-पाति का घोर विरोध किया. अत: निम्न जाति के अनेक लोगों ने इस धर्म को अपना लिया |
  4. बौदध भिक्षुओ के अच्छे चरित्र से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने यह धर्म अपना लिया |
  5. बौदध धर्म को अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि अनेक राजाओ का सरंक्षण प्राप्त हुआ. उनके प्रयत्नों से यह धर्म भारत के साथ-साथ विदेशों में भी फ़ैल गया |

क्यू. गौतम बुदध पर एक नोट लिखो |

उत्तर :- गौतम बुदध का जन्म 566 ई. पू. में कपिलवस्तु में हुआ. उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था. उनके पिता का नाम शुदधोधन तथा माता का नाम महामाया था. गौतम के जन्म के कुछ ही दिनों पशचात उनकी माता का देहांत हो गया. उनके पिता ने गौतम के लिए एक सुंदर महल बनवाया, परंतु महल की चारदीवारी में गौतम का दिल न बहल सका. अत: उनके पिता ने उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा के साथ कर दिया. उनके यंहा एक पुत्र का जन्म भी हुआ, परंतु फिर भी वह दुःखी रहने लगे.कुछ समय पशचात गौतम ने रोग, बुढ़ापा, मृत्यु आदि के दृश्य देखे. उन्होंने इन दुःखो का कारण जानने के लिए घर-बार त्याग दिया. उन्होंने छ: वर्ष तक घोर तपस्या भी की.अंत में वह ‘गया’ के समीप एक वट के वृक्ष के निचे समाधि लगाकर बैठ गए. चालीस दिन के पशचात उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ और वह ‘बुद’ कहलाए. बुदध ने अपना प्रथम उपदेश वनारस के समीप सारनाथ के स्थान पर दिया यंहा पर पांच व्यक्ति उनके शिष्य बने. बाद में इनके शिष्यों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गयी. 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर (देवरिया जिला) नामक स्थान पर उन्होने महानिर्वाण प्राप्त किया |

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