5 New Motivational Story in Hindi


Top 5 Motivational Stories in Hindi | Latest Motivational story in Hindi


New motivational story in Hindi:- If you’re searching for motivational stories in Hindi then you are at the right place. Here I’m sharing with you the top 5 motivational stories in Hindi which is really amazing and mind-blowing, these Hindi motivational Stories help you to grow in your life and whatever currier you choose. these motivational stories are for everyone.

Top 5 Motivational Stories in Hindi सफलता की कहानियां 2021
Top 5 Motivational Story in Hindi सफलता की कहानियां 2021

दोस्तों नमस्कार आप सभी का स्वागत है All Exam Solutions in Hindi में आज मैं आपको एक ऐसी motivational stories बता रहा हूँ जिसे पढ़ने के बाद आपकी ऊर्जा पहले जैसी नही रहेगी तो चलिए बिना आपका समय गवाये motivational story को शुरू करते है


हमेशा सीखते रहो


Motivational Story In Hindi : एक बार गाँव के दो व्यक्तियों ने शहर जाकर पैसे कमाने का निर्णय लिया. शहर जाकर कुछ महीने इधर-उधर छोटा-मोटा काम कर दोनों ने कुछ पैसे जमा किये. फिर उन पैसों से अपना-अपना व्यवसाय प्रारंभ किया. दोनों का व्यवसाय चल पड़ा. दो साल में ही दोनों ने अच्छी ख़ासी तरक्की कर ली.

व्यवसाय को फलता-फूलता देख पहले व्यक्ति ने सोचा कि अब तो मेरे काम चल पड़ा है. अब तो मैं तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाऊंगा. लेकिन उसकी सोच के विपरीत व्यापारिक उतार-चढ़ाव के कारण उसे उस साल अत्यधिक घाटा हुआ.

अब तक आसमान में उड़ रहा वह व्यक्ति यथार्थ के धरातल पर आ गिरा. वह उन कारणों को तलाशने लगा, जिनकी वजह से उसका व्यापार बाज़ार की मार नहीं सह पाया. सबने पहले उसने उस दूसरे व्यक्ति के व्यवसाय की स्थिति का पता लगाया, जिसने उसके साथ ही व्यापार आरंभ किया था. वह यह जानकर हैरान रह गया कि इस उतार-चढ़ाव और मंदी के दौर में भी उसका व्यवसाय मुनाफ़े में है. उसने तुरंत उसके पास जाकर इसका कारण जानने का निर्णय लिया.

अगले ही दिन वह दूसरे व्यक्ति के पास पहुँचा. दूसरे व्यक्ति ने उसका खूब आदर-सत्कार किया और उसके आने का कारण पूछा. तब पहला व्यक्ति बोला, “दोस्त! इस वर्ष मेरा व्यवसाय बाज़ार की मार नहीं झेल पाया. बहुत घाटा झेलना पड़ा. तुम भी तो इसी व्यवसाय में हो. त्तुमने ऐसा क्या किया कि इस उतार-चढ़ाव के दौर में भी तुमने मुनाफ़ा कमाया?”

यह बात सुन दूसरा व्यक्ति बोला, “भाई! मैं तो बस सीखता जा रहा हूँ, अपनी गलती से भी और साथ ही दूसरों की गलतियों से भी. जो समस्या सामने आती है, उसमें से भी सीख लेता हूँ. इसलिए जब दोबारा वैसी समस्या सामने आती है, तो उसका सामना अच्छे से कर पाता हूँ और उसके कारण मुझे नुकसान नहीं उठाना पड़ता. बस ये सीखने की प्रवृत्ति ही है, जो मुझे जीवन में आगे बढ़ाती जा रही है.”

दूसरे व्यक्ति की बात सुनकर पहले व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास हुआ. सफ़लता के मद में वो अति-आत्मविश्वास से भर उठा था और सीखना छोड़ दिया था. वह यह प्रण कर वापस लौटा कि कभी सीखना नहीं छोड़ेगा. उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया.

सीख

दोस्तों, जीवन में कामयाब होना है, तो इसे पाठशाला मान हर पल सीखते रहिये. यहाँ नित नए परिवर्तन और नए विकास होते रहते हैं. यदि हम स्वयं को सर्वज्ञाता समझने की भूल करेंगे, तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जायेंगे. क्योंकि इस दौड़ में जीतता वही है, जो लगातार दौड़ता रहता है. जिसें दौड़ना छोड़ दिया, उसकी हार निश्चित है. इसलिए सीखने की ललक खुद में बनाये रखें, फिर कोई बदलाव, कोई उतार-चढ़ाव आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता.


हीरे की खान


Motivational Story In Hindi: अफ्रीका महाद्वीप में हीरों की कई खानों की खोज हो चुकी थी, जहाँ से बहुतायत में हीरे प्राप्त हुए थे. वहाँ के एक गाँव में रहने वाला किसान अक्सर उन लोगों की कहानियाँ सुना करता था, जिन्होंने हीरों की खान खोजकर अच्छे पैसे कमाये और अमीर बन गए. वह भी हीरे की खान खोजकर अमीर बनना चाहता था.

एक दिन अमीर बनने के सपने को साकार करने के लिए उसने अपना खेत बेच दिया और हीरों की खान की खोज में निकल पड़ा. अफ्रीका के लगभग सभी स्थान छान मारने के बाद भी उसे हीरों का कुछ पता नहीं चला. समय गुजरने के साथ उसका मनोबल गिरने लगा. उसे अपना अमीर बनने का सपना टूटता दिखाई देने लगा. वह इतना हताश हो गया कि उसके जीने की तमन्ना ही समाप्त हो गई और एक दिन उसने नदी में कूदकर अपनी जान दे दी.

इस दौरान दूसरा किसान, जिसने पहले किसान से उसका खेत खरीदा था, एक दिन उसी खेत के मध्य बहती छोटी नदी पर गया. सहसा उसे नदी के पानी में से इंद्रधनुषी प्रकाश फूटता दिखाई पड़ा. उसने ध्यान से देखा, तो पाया कि नदी के किनारे एक पत्थर पर सूर्य की किरणें पड़ने से वह चमक रहा था. किसान ने झुककर वह पत्थर उठा लिया और घर ले आया.

वह एक ख़ूबसूरत पत्थर था. उसने सोचा कि यह सजावट के काम आएगा और उसने उसे घर पर ही सजा लिया. कई दिनों तक वह पत्थर उसके घर पर सजा रहा. एक दिन उसके घर उसका एक मित्र आया. उसने जब वह पत्थर देखा, तो हैरान रह गया.

उसने किसान से पूछा, “मित्र! तुम इस पत्थर ही कीमत की जानते हो?”

किसान ने जवाब दिया, “नहीं.”

“मेरे ख्याल से ये हीरा है. शायद अब तक खोजे गए हीरों में सबसे बड़ा हीरा.” मित्र बोला.

किसान के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल था. उसने अपने मित्र को बताया कि उसे यह पत्थर अपने खेत की नदी के किनारे मिला है. वहाँ ऐसे और भी पत्थर हो सकते हैं.”

दोनों खेत पहुँचे और वहाँ से कुछ पत्थर नमूने के तौर पर चुन लिए. फिर उन्हें जाँच के लिए भेज दिया. जब जाँच रिपोर्ट आयी, तो किसान के मित्र की बात सच निकली. वे पत्थर हीरे ही थे. उस खेत में हीरों का भंडार था. वह उस समय तक खोजी गई सबसे कीमती हीरे की खदान थी. उसका खदान का नाम ‘किम्बर्ले डायमंड माइन्स’ है. दूसरा किसान उस खदान की वजह से मालामाल हो गया.

पहला किसान अफ्रीका में दर-दर भटका और अंत में जान दे दी. जबकि हीरे की खान उसके अपने खेत में उसके क़दमों तले थी.

सीख

मित्रों, इस कहानी में हीरे पहले किसान के कदमों तले ही थे, लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं पाया और उनकी खोज में भटकता रहा. ठीक वैसे ही हम भी सफलता प्राप्ति के लिए अच्छे अवसरों की तलाश में भटकते रहते हैं. हम उन अवसरों को पहचान नहीं पाते या पहचानकर भी महत्व नहीं देते, जो हमारे आस-पास ही छुपे रहते हैं. जीवन में सफ़ल होना है, तो आवश्यकता है बुद्धिमानी और परख से उन अवसरों को पहचानने की और धैर्य से अनवरत कार्य करने की. सफ़लता निश्चित है.

Short motivational Hindi stories with moral


जो चाहोगे सो पाओगे


Motivational Story In Hindi : एक साधु घाट किनारे अपना डेरा डाले हुए था. वहाँ वह धुनी रमा कर दिन भर बैठा रहता और बीच-बीच में ऊँची आवाज़ में चिल्लाता, “जो चाहोगे सो पाओगे!”

उस रास्ते से गुजरने वाले लोग उसे पागल समझते थे. वे उसकी बात सुनकर अनुसना कर देते और जो सुनते, वे उस पर हँसते थे.

एक दिन एक बेरोजगार युवक उस रास्ते से गुजर रहा था. साधु की चिल्लाने की आवाज़ उसके कानों में भी पड़ी – “जो चाहोगे सो पाओगे!” “जो चाहोगे सो पाओगे!”.

ये वाक्य सुनकर वह युवक साधु के पास आ गया और उससे पूछने लगा, “बाबा! आप बहुत देर से जो चाहोगे सो पाओगे चिल्ला रहे हो. क्या आप सच में मुझे वो दे सकते हो, जो मैं पाना चाहता हूँ?”

साधु बोला, “हाँ बेटा, लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पाना क्या चाहते हो?”

“बाबा! मैं चाहता हूँ कि एक दिन मैं हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनूँ. क्या आप मेरी ये इच्छा पूरी कर सकते हैं?” युवक बोला.

“बिल्कुल बेटा! मैं तुम्हें एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने चाहे हीरे-मोती बना लेना.” साधु बोला. साधु की बात सुनकर युवक की आँखों में आशा की ज्योति चमक उठी.

फिर साधु ने उसे अपनी दोनों हथेलियाँ आगे बढ़ाने को कहा. युवक ने अपनी हथेलियाँ साधु के सामने कर दी. साधु ने पहले उसकी एक हथेली पर अपना हाथ रखा और बोला, “बेटा, ये इस दुनिया का सबसे अनमोल हीरा है. इसे ‘समय’ कहते हैं. इसे जोर से अपनी मुठ्ठी में जकड़ लो. इसके द्वारा तुम जितने चाहे उतने हीरे बना सकते हो. इसे कभी अपने हाथ से निकलने मत देना.”

फिर साधु ने अपना दूसरा हाथ युवक की दूसरी हथेली पर रखकर कहा, “बेटा, ये दुनिया का सबसे कीमती मोती है. इसे ‘धैर्य’ कहते हैं. जब किसी कार्य में समय लगाने के बाद भी वांछित परिणाम प्राप्त ना हो, तो इस धैर्य नामक मोती को धारण कर लेना. यदि यह मोती तुम्हारे पास है, तो तुम दुनिया में जो चाहो, वो हासिल कर सकते हो.”

युवक ने ध्यान से साधु की बात सुनी और उन्हें धन्यवाद कर वहाँ से चल पड़ा. उसे सफ़लता प्राप्ति के दो गुरुमंत्र मिल गए थे. उसने निश्चय किया कि वह कभी अपना समय व्यर्थ नहीं गंवायेगा और सदा धैर्य से काम लेगा.

कुछ समय बाद उसने हीरे के एक बड़े व्यापारी के यहाँ काम करना प्रारंभ किया. कुछ वर्षों तक वह दिल लगाकर व्यवसाय का हर गुर सीखता रहा और एक दिन अपनी मेहनत और लगन से अपना सपना साकार करते हुए हीरे का बहुत बड़ा व्यापारी बना.

सीख

लक्ष्य प्राप्ति के लिए सदा ‘समय’ और ‘धैर्य’ नाम के हीरे-मोती अपने साथ रखें. अपना समय कभी व्यर्थ ना जाने दें और कठिन समय में धैर्य का दामन ना छोड़ें. सफ़लता अवश्य प्राप्त होगी.


हरिनाम की महिमा


Motivational Story In Hindi: गुरु तेगबहादुरजी भक्ति और शक्ति के उपासक थे। उन्होंने 1675 में धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली में बलिदान देकर यह सिद्ध किया कि एक धर्मगुरु और कवि – साहित्यकार समय आने पर धर्म की रक्षा के लिए सिर भी कटा सकता है।

बलिदान देने से पूर्व अनेक वर्षों तक गुरु तेगबहादुरजी ने देश का भ्रमण कर असंख्य लोगों को सदाचार का उपदेश दिया। पंजाब के अनेक कसबों व गाँवों में पीने के पानी का अभाव दूर करने के लिए उन्होंने श्रमदान कर तालाब बनवाए, कुएँ खुदवाए।

एक बार गुरु महाराज तलवंडी से भठिंडा होते हुए सुलसट पहुँचे। उनके पास एक सुंदर घोड़ा था । चार चोर उस घोड़े को चुराने के लिए युक्ति करने लगे।

गुरुजी उनका मंतव्य जान गए। उन्होंने कहा, ‘यदि घोड़े पर नीयत है, तो चोरी क्यों करते हो ! मुझसे माँगकर ले जाओ। उनकी प्रेममय वाणी सुनकर चोरों को इतनी आत्मग्लानि हुई कि दो ने पश्चात्ताप के रूप में तत्काल आत्महत्या कर ली।

गुरुजी ने अगले पड़ाव में भक्तजनों के बीच प्रवचन देते हुए कहा कि पाप के प्रायश्चित्त का साधन आत्महत्या नहीं है। व्यक्ति ईश्वर का नाम सुमिरन करके हर तरह के पाप से मुक्त हो सकता है।

उन्होंने कहा, ‘शर्त यही है कि भविष्य में पाप न करने का दृढ़ संकल्प ले लिया जाए। लोभ, लालच व हिंसा की भावना त्याग देने वाले का हृदय स्वतः निर्मल बन जाता है।’ उनके सदुपदेशों से लाखों व्यक्तियों ने दुर्गुण त्यागकर अपना कल्याण किया ।


संन्यासी की दया भावना


Motivational Story In Hindi: स्वामी दयानंद गिरि एक ब्रह्मनिष्ठ संत थे । वे प्रायः कहा करते थे कि जो व्यक्ति गरीबों व असहायों से प्रेम करता है, भगवान् उसे अपनी कृपा का अधिकारी बना देते हैं ।

स्वामीजी विरक्तता की साक्षात् मूर्ति थे। चौबीस घंटे में एक बार किसी घर से भिक्षा प्राप्त करते थे। शेष समय साधना व लोगों को सदाचार का उपदेश देने में लगाते ।

एक बार किसी मजदूर ने उन्हें नंगे पाँव विचरण करते देखकर कपड़े के जूते भेंट किए। उन्होंने उस निश्छल भक्त के जूते खुशी-खुशी स्वीकार कर लिए कुछ वर्ष बाद उनका एक भक्त नए जूते लेकर आया तथा प्रार्थना की कि पुराने जूते उतारकर उसके लाए जूते पहन लें।

स्वामीजी ने जवाब दिया, ‘इन जूतों में मुझे गरीब मजदूर के प्रेम की झलक दिखाई देती है। मैं इन्हें तब तक पहनता रहूँगा, जब तक ये पूरी तरह फट न जाएँ।’

एक बार उनके भक्त शिवरात्रि पर भंडारा कर रहे थे । स्वामीजी प्रवचन में कह रहे थे कि वही सत्कर्म सफल होता है, जिसमें गरीबों के खून-पसीने की कमाई लगती है।

अचानक उन्होंने देखा कि दरवाजे पर कुछ लोग एक वृद्धा को हाथ पकड़कर बाहर निकाल रहे हैं। स्वामीजी ने कहा, ‘माई को आदर सहित यहाँ लाओ। ‘ वृद्धा आई तथा बोली, ‘महाराज, मेरे ये दो रुपए भंडारे में लगवा दें। ये लोग नहीं ले रहे हैं। ‘

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स्वामीजी ने भक्त को पास बुलाया और बोले, ‘इन दो) रुपए का नमक मंगवाकर भंडारे में लगवा दो । खून-पसीने की ईमानदारी की कमाई के नमक से भंडारा भगवान् का प्रसाद बन जाएगा।’

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