Rise and Expansion of Magadha Empire


Rise and Expansion of Magadha Empire

मगध सामराज्य का उत्थान और विस्तार:-


भारत के प्राचीन इतिहास में मगध को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था छठी शताब्दी ई. पू. में यह उत्तरी भारत में स्थापित 16 महाजनपदों में सबसे महत्वपूर्ण था पांचवी शताब्दी ई. पू. में यह सबसे विस्तृत एवं शक्तिशाली साम्राज्य बन गया . इस साम्राज्य ने चतुर्थ शताब्दी ई. पू. तक भारत की राजनीती में बड़ी म्हत्ब्पूर्ण भूमिका निभाई मगध सम्राज्य के उत्थान और विकास में निम्न लिखित शासकों ने बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया.


बिंबिसार 544-492  ई. पू. :-


मगध साम्राज्य के उत्थान और विकास में बिंबिसार का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था. बह 544 ई. पू. में मगध का शासक बना उस समय उसकी आयु 15 वर्ष की थी उसने 492 ई. पू. तक शासन किया उसका संबंध ह्र्यंक वंश के साथ था और वह महात्माबुध का समकालीन था. बिंबिसार एक सफल राजनीतिज्ञ था. सिहासन पर बैठने के पश्चात् उसने भारत की राजनीती को बड़े ध्यानपूर्वक समझा उसने मगध राज्य की स्थिति को दृढ बनाने के उदेश्य से उस समय के विख्यात और शक्तिशाली राज्यों के साथ वैवाहिक संबध स्थापीत किये.

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   उसने सर्वप्रथम कौशल नरेश प्रसेनजीत की बहन कोशल देवी से विवाह किया उसे दहेज में काशी नामक शहर दिया गया. इस शहर के कारण मगध राज्य की एक लाख रूपये बार्षिक आय बढ़ गयी उसकी दूसरी रानी चेलना लिच्छवी वंश से संबध रखती थी. ऊसकी तीसरी रानी केश्मा पंजाब के म्द्र् राज्य के शासक की पुत्री थी. उसकी चौथी रानी विदेह राज्य की राजकुमारी वासवी थी. इन बैवाहिक संबधो ने न केवल मगध सम्राज्य को शक्तिशाली ही बनाया, अपितू उसकी भव्यता को भी वृद्धी की.

इतिहासकार आर.एस.त्रिपाठी के अनुसार, “ ये विबाह न केबल बिंबिसार के समकालीन शासको में प्राप्त प्रमुखता को ही दर्शाते है, अपितु इन्होने मगध राज्य के विस्तार के लिए मार्ग भी तयार किया , ”


अजतसत्तू (आजातशत्रु) 493-460 ई. पू. :-


बिंबिसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अजातसत्तू 492 ई. पू. में मगध के सिहासन पर बिठा उसने 460ई. पू. तक शासन किया बह वहुत शक्तिशाली शासक प्रमाणित हुआ . उसने अपने शासनकाल में मगध राज्य को साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया . अजत्स्त्तु को सर्वप्रथम कौशल के राजा प्रसेन जित के साथ युद्ध करना पड़ा. इस युद्ध का कारण काशी था. यह प्रदेश प्रसेनजित ने अपनी बहन कोशल देवी के दहेज के रूप में मगध के शासक बिबिसर को दिया था बिंबिसार की मृत्यु के पच्चात कोशल देवी का भी जल्द ही धिहंत हो गया.

प्रसेनजित उन दोनों की मृत्यु का उतरदायी अजत्स्त्तू को ही मानता था. इसलिये उसने काशी के प्रदेश को बापिस लेने की घोश्न्ना की क्योंकि मगध सम्राज्य को काशी से वार्षिक 1 लाख रूपये की आय होती थी. इसलिए अजातसत्तू इससे शन न कर पाया उसने काशी पर अधिकार करने के उदेश्य से कोशल राज्य पर आक्रमण कर दिया.दोनों के बिच यह युद्ध देर्घ्कल तक चलता रहा. अंत में दोनों शासको के बिच संधि हो गयी.


अजातसत्तू के उत्तराधिकारी:-


अजातसत्तू की मृत्यु के पशचात उसका पुत्र उदयन मगध के सिहासन पर बैठा. उसने अपने शासनकाल में (460-444 ई. पू.) पाटलिपुत्र को मगध साम्राज्य की राजधानी बनाया. इसका कर्ण यह था कि पाटलिपुत्र मगध सम्राज्य के मध्य में स्थित था उसके पशचात अनुरुद्ध, मुंड और नागदशक नामक शासक मगध के सिहासन पर बैठे उन्होंने 412 ई. पू. तक शासन किया ये सभी शासक निकमें और अयोग्य निकले


शिशुनाग वंश:-


412 ई.पू. में शिशुनाग नी हर्यंक वंश के अंतिम शासक नाग्द्स्क का तख्ता पलटकर मगध में इक नए राजवंश की स्थापना की उसने बैशाली को कुछ समय के लिए मगध स्म्रज्ज्य की राजधानी बनाया. उसकी सबसे महत्वपूर्ण सफलता आवंती के शासक च्न्दप्र्द्योत को पराजित करना था.

इसके अतिरिक्त उसने वत्स और कोशल शासको को भी पराजित किया इन शासको के प्रदेशो को मगध सम्राज्य में समिलित कर लिया गया जिसके परिणामस्वरूप is सम्राज्य की सीमाए दूर दूर तक फ़ैल गयी शीशुनाग के पश्चात् उसका पुत्र कलासोक मगध का शासक बना उसने 387 ई..पू. को वैशाली में बौध भिखुओ की दूसरी सभा आयोजित की थी 364 ई. पू. में महापद्म नन्द ने कालासोक की हत्या कर दी.

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नंद वंश:-


364 ई. पू. में महापद्मनन्द ने मगध में नन्द वंश की स्थापना की वह एक नीच वंश सी सम्बध रखता था. उसने 28 वर्ष तक शासन किया.वह बड़ा शक्तिशाली शासक प्रमाणित हुआ. उसकी सैनिक शक्ति बहुत विशाल और दृढ थी. इसी कारण उसे ‘उग्रसेन’ कहा जाता था. उसे क्षत्रियो का नाश करने के कारण ‘सर्वक्षत्रांतक ‘ भी कहा जाता है उसने अपने शासनकाल के दौरान इक्ष्वाकु, पंचाल, कुरु, शुर्सैन, मिथिला और कलिंग इत्यादि शासको को पराजित करके मगध सम्राज्य की सीमओं में खूब बिस्तर किया.

परिणामस्वरूप उसे  उतरी भारत का प्रथम महान सम्राट कहा जाता है. डॉ. के.सी. चौधरी का यह कहना बिल्कुल सही था कि “निस्संदेह महापद्म नन्द एक विशाल साम्राज्य का स्वामी था, परंन्तु उसकी केवल यही दें नही थी , अपितु उसने इसे संघठित और एक दृढ प्रशासन भी प्रदान किया.”

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